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घरेलु हिंसा में जितना दोष एक पक्ष का होता है उतना ही दूसरे पक्ष का भी होता है। अगर आप(लड़कियो ) पर घरेलु हिंसा हो रही है तो आप इसकी कुछ हद्द तक जिम्मेदार है ,जैसे क्यों आपने पहले आवाज नहीं उठाई क्यों आपने छोटे तनाव को इतना गम्भीर रूप लेने दिया जिसका परिणाम आपके जीवन पर पड़ रहा है या पड़ सकता है। जरुरी नहीं के आप हर छोटे मोटे झगडे पर ससुराल वालो के खिलाफ ४९८ अ लगा दे , ,सही समय पर अपने मायके वालो से शांति से बात करे उन्हें पूरी बात समझाए ,अपने ससुराल पक्ष को पूरी कोशिश करे के वो आपका पक्ष समझे ,इस प्रक्रिया में जरुरी ये है के सही तरीके से बात आप दोनों के सामने (मायके ,ससुराल) रखे। जहा जिसकी गलती है अगर वो मान्य करले तो घर में तनाव कि स्थिति पर अंकुश लाया जा सकता है. जितना हिंसा करना गलत है उतना सहना भी गलत है पर अगर सही समझ से हम काम ले तो छोटे झगड़े या मतभेद ४९८ अ कि धरा में उलझ नहीं सकते। कभी कभी स्थिति सीमा से बाहर हो जाती है जहा दोनों पक्ष सुनने कि मंशा नहीं रखते ऐसे में आप एक अच्छे " negotiator " conciliator " से संपर्क कर सकते है। जरुरी ये है के आप सतर्क बने आप खुद अपने पर हो रहे अत्याचार कि ५० % भागीदार है। यही बात लड़को पर भी लागु होती है जहा तक हो आप भी अपने तनाव का समाधान किसी अच्छे कौंसिल्लर से करे। याद रखिये रिश्ते निभाना मुश्किल है असम्भव नहीं। घर के छोटे छोटे झगडे कब उग्र रूप लेलेते है आपको भी पता नहीं चलता अगर आप सजग रहे तब आप तनाव मुक्त सुखी परिवार बना सकते है जिस तरह ताली एक हाथ से नहीं बजती उसी तरह सुखी परिवार हिंसा मुक्त परिवार कि परिभाषा तब तक पूरी नहीं होती जब तक दोनों (पति पत्नी ) एक दूसरे को समझते हुए एक दूसरे का साथ नहीं निभाते ,कानून आपके साथ तभी होगा जब आप कानून का साथ देते है।
जो घरेलु हिंसा करते है उन्हें एक बार ये भी सोचना चाहिए के क्या वो ये हिंसा अपने बेटी पर बहन पर देख सकते है ? अगर नहीं देख सकते तो दुसरो के बेटी पर बहन पर क्यों करते हो। किसी पर हिंसा करना कोई गर्व कि बात नहीं है आपकी घटिया मानसिकता का प्रदर्शन मात्र है। लड़किया भी अगर परिवार में खुद को मजबूत और सही रखने का प्रयास करे बजाये कलह किये तब उनको ऐसीहिंसा का सामना शायद न करना पड़े ससुराल पक्ष को समझने कि आपकी भी जिम्मेदारी है। हर दम ससुराल पक्ष गलत नहीं होते ये एक बार सोचने कि जरुरत है।