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वर्त्तमान समय में समाज के लिए 
एक चिंतनीय विषय है की 
शादियों को आज सौदों की तरह 
तय किया जा रहा है। 
शादी सिर्फ दो दिलो का मिलन ही 
नहीं बल्कि दो परिवार-दो विचारो 
का मिलन है। 
इन दिनों संबध तय करने के पूर्व 
खुलेआम पूछा जाता है- बजट क्या है ?
यह सवाल हमारी सामाजिक 
सोच को उजागर करता है। 
यही आलम रहा तो आने वाले 
दिनों में हम भी पच्शिम की तरह ही 
शादी-विवाह को व्यापार समज लेंगे। 
इसी सोच के चलते तलाक के 
मामले बढ़ जायेंगे।
इसलिए हम वैवाहिक सम्बन्धो 
को व्यापार न बनाये।


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