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विवाह जिसने ये रस्म बनाई ,वाह क्या खूब बनाई,
दो नितांत अजनबी एक अनूठे बंधन में बंध जाते हैं। 
जीवन भर के लिए एक -दूसरे के हो जाते हैं, 
वह"मैं"नहीं "हम" हो जातें हैं ,दो जिस्म एक जान बन जाते हैं। 
सारे रिश्तों से बढ़कर हो जाता है ये रिश्ता प्यारा,
उनकी नजर में उनका घर होता है जहाँ से न्यारा।
हर सुख-दुःख ,परेशानियों में एक दुसरे का साथ निभाने का वचन लेतें हैं
कभी साथ ना छोड़ने का वायदा करतें हैं। 
शुरू शुरू में रहन सहन ,विचारों ,इच्छाओं में हो जातें हैं मतभेद
पर प्यार,विश्वास ,सहनशीलता ,समझदारी मिटा देतें है सब भेद। 
अहम् को छोडकर ,कमियों को भूलकर , बुराइयों को छोडकर
एक दूसरे की अच्छाइयों को देखिये और दिल से अपनाईये।
आजकल लोग जोड़ने में नहीं तोड़ने में विश्वास करने लगें हैं
इसीलिए विवाह जैसा प्यारा बंधन तलाक में तब्दील होने लगे है। 
अहम् ,शक ,चारित्रिक खामियों,लालच के कारण परिवार बिखर रहें हैं
बच्चों की जिंदगियों पर ऐसे रिश्ते बहुत असर कर रहें हैं। 
बड़े ही जब समझदारी नहीं दिखायेंगे ,तो अपने बच्चों को क्या सिखायेंगे
एक बंधन तोडकर ,दूसरा बंधन जोड़ना किसी को भी आसान नहीं होता है। 
बच्चों को भी अकले माँ या अकेले पिता द्वारा पालना मुश्किलें खड़ी करता है 
पहला प्यार ,पहली शादी की बात ही अलग होती है। 
दूसरे बंधन में समझोता ज्यादा भावनाएं कम होतीं है
समाज भी ऐसे बच्चों को अलग नज़रों से देखने लगता है। 
इसीलिए बच्चा भी शर्म,झिझक से समाज से कटने लगता है
विवाह जैसी प्यारी रस्म से उसका विश्वास उठने लगता है। 
और वो समाज से बदला लेने के लिए बिगड़ने लगता है
इसीलिए बच्चों में हिंसात्मक प्रवृति बढ़ रही है। 
हमारी संस्कृति और परम्पराओं से उनकी धारणाएं बदल रहीं हैं
अपनी सोच और नजरिये में बदलाव लाइए। 
विवाह जैसी अच्छी रस्म का मजाक मत बनाईए
डिवोर्स या तलाक जैसी रस्म बहुत मजबूरी में ही अपनाइए। 
तभी हमारे देश का भविष्य हमारी परम्पराओं को निभाएगा
नहीं तो वह पश्चिमी सभ्यता को अपना रहा है,उन्ही के संस्कारों में ढल जाएगा। 
अपने रस्मों रिवाजों को दिल से निभाने की कसम खाइए
और देश का भविष्य उज्जवल बनाईए।


स्वर्णकार रिश्ते 
एडमिन टीम 
www.swarnkarrishtey.in