आजकल कुंडली के चक्कर मे अपने बच्चो के लिए आये हुए अच्छे से अच्छे रिश्ते माता-पिता ठुकरा रहे है। उच्च शिक्षित बच्चे और उनके पढ़े लिखे अभिभावक भी कम या अशिक्षित जोतिष के चक्कर मे पड़कर उस पर विश्वास कर खुद से चलकर घर बैठे आये हुए रीश्ते को ना कह देता है और कुंडली के चक्कर मे अपने बच्चो की उम्र 25 से 30 तक बढ़ा रहा है और उनका जीवन बर्बाद कर रहा है। कुंडली तो माँ बेटे की भी नहीं मिलती। पति पत्नी की कहा से मिलेगी। पहले जमाने में जब शादी के वक़्त कुंडली मिलाते थे क्या?
पहले शादी के वक़्त बस लड़की को समझा देते कि तेरा ससुराल ही सब कुछ है और लड़के को कहते कि यह तुम्हारी पत्नी है जिसके साथ पूरी जिंदगी अच्छे से निभानी है। पहले लड़का हो या लड़की उनके ज्यादा नखरे नही होते थे। आजकल लड़कियों को संस्कार तो देता नहीं लेकिन फ्री टॉक टाइम वाला टाटा टु टाटा फ्री वाला या जिओ टू जिओ फ्री वाला फोन जरुर दे देते हैं कि अगर ससुराल में कोई कुछ कहे तो बस एक फ़ोन कर देना। मेरे ख्याल से अगर हम अपने बेटे और बेटियों को अच्छे संस्कार दे तो कुंडली की जरूरत ही नही पड़ेगी।शादी के समय अपने बच्चो की कुंडली मिलाने की नॉबत आएगी ही नही।जिस मां को संस्कार मिले वह ही तो अपने संस्कार दे सकती है अपने बच्चो मे बांट सकती हैं,आपमे संस्कार हैं तो आप दूसरों को देंगे।
लेकिन अगर माँ को ही संस्कार नही मिले हो तो वो क्या अपने बच्चो को अच्छे संस्कार देगी यह भी आज का एक कटु सत्य है। संस्कारी और खानदानी परिवार के बच्चो के शादी के बाद कभी टिक्कत आती ही नही है अगर कभी कभार किसी के साथ टिक्कत आ भी जाये तो वो समझदारी दिखाकर मिल और बात कर सब ठीक कर देते है।
इसलिए कुंडली का चक्कर छोड़िए और घर बैठे आये हुए अच्छे रिश्ते को हा कहकर उनका वैवाहिक जीवन सुखमय करे।हमेशा याद रखे की रिश्ते ऊपर से बनकर आते है और अच्छे संस्कारी और समझदार बच्चो को कुंडली मिलान की कभी भी जरूरत नही पड़ती है वो दोनो अपनी समझदारी से अपना वैवाहिक जीवन अच्छा बना सकते है।