आजकल समाज में लोग बेटी के रिश्ते के लिए लड़के मे चौबीस टंच का सोना खरिदने जाते है। देखते देखते,घूमते घूमते चार पांच साल भी टाईमपास हो जाता है।पढाई और क्वालीफीकेसन के नाम पर भी टाईमपास कर देते हैं। "लङके देखने का अंदाज भी टाईमपास का अनौखा उदाहरण हो गया है?" -खूद का मकान हैं कि नही? -अगर है तो फर्नीचर कैसा है? -मकान में कमरे कितने है? -परिवार का रहन सहन कैसा है? -हाई फाई परंपराओं से तौला जाता है। -लड़के के पास फोर व्हीलर है की नही? -कितने भाई हैं? -परिवार छोटा है या बड़ा? -जॉइंट परिवार है या एकल? -लड़का मेट्रो सिटी में रहता या नहीं? -कंपनी MNC है या नही? -बहन कितनी हैं-शादी हूई कि नही? -रिश्ते नाते वाले मॉडर्न है या पुराने? "फिर" -बच्चे कि हाईट -रंग रूप -आदत -पढाई -कमाई -बैंक बैलेंस सब बातो पर इन्क्वायरी पूरी होने के बाद कुछ प्रश्न पूछने में समय पास हो जाता है। ईर्ष्या और डिमांड भी सब कूछ चोपट कर जाती हैं। "मां-बाप का स्वभाव ठीक नहीं है?" हालात तो क्या कहे माँ बाप की नींद खूलती है पच्चीस पर और चार पांच साल कि दौड धूप बच्चो की जवानी को बरबाद करने के लिए काफी है इसी वजह से अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाते है। "मै सही तुम गलत के खेल में, न जाने कितने रिश्ते ढह गए।" एक ऐसा समय था जब बिना देखे, घर के खानदान व व्यवहार पर रिश्ते होते थे।वो लम्बे भी निभते थे।समधी समधन में मान मनुहार करती थी। सुख दूख में साथ था।रिश्तेनाते कि अहमियत का अहसास था। चाहे पैसे की माया कम थी मगर खुशीया घर आंगन पणीहारी में झलकती थी।कभी कोई ऊची नीची बात हो जाती तो आपस बड़े बुजर्ग संभाल लेते थे। "तलाक" शब्द रिश्तों में था ही नही। दाम्पत्य जीवन खटे-मीठे अनुभव में बीत जाया करता था और दोनों एक दूसरे के बुढ़ापे की लाठी बनते थे।पोते-पोतियों में संस्कारो के बीज भरते थे। "अब कहा है वो संस्कार।" शादी होते ही साल-दो साल में तलाक की बाते हो जाती है। पहले लड़की वाले झुककर रहते थे आज लड़के वाले डरे डरे से रहने लगे है,पता नहीं कब शॉपिंग ना कराने पर दहेज या 498 का केस फाइल ना हो जाये। आँख की शर्म तो इतिहास हो गई। कमाल है, "आजाद रिश्तों में लोग बंधन ढूंढ रहे है। और बंधे हुए रिश्तों में आजादी।" और नोबत आ जाती है रिश्तों में समजोता करने की।लड़का अपने समाज का नही होगा भी तो चलेगा ऐसी बाते भी सामने आ रही है।लडकिया खुले आम लव मैरिज कर रही है। दोष दे रही है समाज में अच्छे लड़के मेरे लायक नही है।क्योकि ये लडकिया आधुनिकता की पराकाष्ठा पार कर गई है।अगर अब भी माँ बाप नही जागेंगे तो स्थितिं विस्फोटक हो जाएगी। समाज के लोगो को समझना होगा। लड़कियों की शादी 22-23 में हो जाये,लड़के की 24-25 में। सब में सब गुण नही मिलते पंडितजी भी 36 गूण में से 21 गूण वालो को पास कर जाते थे। 24 टंच ना सही 19 टंच भी सोना ही है।घर बंगले,फोर व्हीलर से पहले व्यवहार तोलो खानदानी ढूढो।जो कूंजी है रिश्ते नाते की वो कभी फैल नही होती। "परिवार अब कहाँ, परिवार तो कब के मर गए" पहले अगाध स्नेह और प्यार अब तो रिश्तों के आईने तड़क कर हो गए हैं कच्चे। केवल मैं और मेरे बच्चे, माँ बाप भी नहीं रहे परिवार का हिस्सा, तो समझिये खत्म ही हो गया किस्सा ! माँ बाप भी आर्थिक चकाचोंध में बह रहे है। आपसी प्रेम अब खत्म होने को परिवार को तोड़ने में अब तो कानून ने भी बो दिए हैं बीज जायज है, लिव इन रिलेशनशिप कॉन्ट्रैक्ट मैरिज ना मुर्गी ना अंडा ना सास ससुर का फंडा। जब पति पत्नी ही नहीं तो परिवार कहाँ से बसते। कॉन्ट्रैक्ट खत्म,चल दिये अपने अपने रास्ते। इस दौरान जो बच्चे हुए, पलते हैं यतीमों की तरह। पीते हैं तिरस्कार का जहर! अर्थ की भागम भाग में मीलों पीछे छूट गए हैं,रिश्ते नातेदार। टूट रहे हैं घर परिवार सूख रहा है प्रेम और प्यार परिवारों का इस पीढ़ी ने ऐसा सत्यानाश किया कि आने वाली पीढ़ियां सिर्फ किताबों में पढ़ेंगी संस्कार। समाज को अब जागना जरूरी है वरना.... रिश्ते ढूढते रह जाएंगे।
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