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कई बार बीच राह में ही "जीवनसाथी" का साथ किसी घटना के कारण छूट जाता है या कोई बिछड़ जाता है,तो कई बार रिश्ते में दरार या ग़लतफ़हमी आ जाती है तब उस रिश्ते को आप चाहकर कर भी बचा नहीं पाते और उस रिश्ते को "पूर्णविराम (तलाक)" देकर अकेले जीने के लिए मजबूर हो जाता है। साथ में अगर पहले शादी से कोई बच्चा हो तो उसको साथ लेकर जीना ओर भी "मुश्किल और कठिन" हो जाता है। परिवार का साथ मिला तो बच्चे को लेकर जीना थोड़ा सा सरल हो जाता है। लेकिन जिंदगी में आगे बढ़ना जरूरी होता है अकेले रहकर जिंदगी कट नही सकती। लड़का हो या लड़की दोनों को ही  मानसिक,शारिरिक, किसी के साथ,प्यार और परिवार की जरूरते के लिए पुनविवाह की आवश्यकता होती है। अगर बच्चे है तो उसको भी पिता या माँ की जरूरत होती है। एक परिवार की जरूरत होती है उसके पालन पोषण की जरूरत होती है।
ऐसे में अगर आगे बढ़ने के लिए पुनर्विवाह की बात चलती है। कोई लड़की विधवा है या तलाकशुदा है और पहले शादी से कोई बच्चा नही है तो उस लड़की या लड़के की शादी होने में कोई समस्या नही आती और आसानी से कोई रिश्ता मिल जाता है और पुर्नविवाह हो जाता है। समस्या तब आती है जब कोई लड़की या लड़का विधवा/विधुर हो या तलाकशुदा हो और उसका कोई बच्चा उसके साथ रहता है। तब रिश्ता ढूढने में माता पिता एव परीवार के लिए काफी कठिन और तकलीफ वाला काम हो जाता है कभी कभी सालो साल लग जाते है लेकिन पुर्नविवाह के लिए रिश्ता नही मिल पाता है ना ही अच्छी सोच का लड़का या ना अच्छी संस्कारी, समझदार लड़की।
खुशकिस्मत से रिश्ते आ भी गए तो शर्त सामने आ जाती है कि लड़की ले जाएंगे किंतु उसका बच्चा या बच्ची को नाना या मामा के यहाँ ही रहेगा या उसे हॉस्टल में रख देंगे या उसका पालन पोषण की ज़िमेदारी नाना या मामा की होगी या उस लड़के को पिता का नाम नही मिलेगा ऐसे कई शर्त लड़के और उसके परिवार के सामने रखी जाती है। कुछ केस में उस लड़के के पालन पोषण और शिक्षा का खर्च तक लड़की के परिवार से लिया जाता है। लड़के को कोई बच्चा हो तो लड़की की शर्त होती है वो उसे नही पालेगी। दादा दादी को पालना पड़ेगा।
आज समाज में ऐसी मानसिकता बन गई है की लड़की के साथ पुनर्विवाह तो करना है लेकिन अगर लड़की का कोई बच्चा या बच्ची है तो उसको स्वीकारना मंजूर नहीं है। लड़की के साथ चाहिए लेकिन उसके बच्चे का नहीं।
क्या मानसिकता बन गई है समाज की।?? 
पढ़े-लिखे उच्च शिक्षित सर्विस क्लास या खानदानी परिवार की भी यह सोच रहती है। दूसरी शादी तो करनी है पत्नी तो लानी है लेकिन बच्चे को अपना नाम नहीं देना है। साथ नहीं रखना है यह कैसी मानसिकता।??
बहोत बार किसी इंसान का जीवनसंगनी उससे बिछड़ जाती है या साथ छोड़ चली जाती है और बच्चे की जिम्मेदारी लड़के या उसके परिवार पर आ जाती है तब लड़की वाले उस लड़के से शादी करना चाहते है पर वो लड़की उस बच्चे को रखना नहीं चाहती, ना प्यार देना चाहती, ना उसे पालना चाहती है। ना उसकी ज़िमेदारी लेना चाहती है। यह भी कैसी अजीब मानसिकता??
जब आपको पुनर्विवाह करना है किसी लड़की को जीवनसाथी बनाना है या किसी लड़के को अपने हमसफ़र बनाना है तो उसके साथ जो बच्चा है उसको भी बड़े प्यार से अच्छी सोच दिखाकर अपनाने में क्या समस्या है यह भी समझ के परे है। किसी मासूम को फिर से प्यार, ममता,अपना नाम देकर उसका पालन पोषण करना तो सबसे बड़ा पुण्य का काम होता है। अपने बचे को तो कोई भी प्यार ममता संस्कार देकर बडा कर अच्छा इंसान बना देता है लेकिन सबसे बड़ा दिलेरी का काम होता है की किसी दूसरे के बच्चे को प्यार दुलार ममता और अपनापन देकर बड़ा कर शिक्षित कर अच्छे संस्कार देकर एक अच्छा इंसान बनाना होता है। यही इंसानियत है। लेकिन आज भी समाज में लोगो और परिवार की सोच बहोत पुराणी है। हम नए भारत में जी रहे है लेकिन सोच अभी भी पुराणी है।
देखा गया है कि पुनर्विवाह में 90% लड़के शादी चाहते है लेकिन साथ में उस लड़की के बच्चे को एक्सेप्ट नहीं करते।वैसे ही 70% लड़किया पुनर्विवाह करना चाहती है लेकिन पहले शादी से जो बच्चा होता है उसको अपना बेटा मानना मजूर नहीं करती। माँ बनकर उसका पालन पोषण नहीं करती। पुनर्विवाह में परिवार की पहली शर्त होती है की हम बच्चे को स्वीकार नहीं करेंगे। शादी करेंगे लेकिन बच्चा नाना या मामा के पास ही रहेगा। इसलिए सभी से निवेदन है की आज हमें अपनी सोच और मानसिकता बदलने पड़ेगी। अगर आप पुनर्विवाह की सोचते है तो उसके साथ बच्चे को भी आनंद से स्वीकार करे। एक बच्चा अपनी माँ से कैसे दूर हो सकता है या एक बच्चा अपने पिता से कैसे अलग रह सकता है।एक मासूम बच्चे से उसको माँ का प्यार कैसे छीन सकता है। एक माँ या एक पिता से उसके बच्चे को अलग कर पुनर्विवाह कर भी लेते है तो क्या आप किसी के साथ अपराध तो नहीं कर रहे हो ना। उस मासूम बच्चे या बच्ची का क्या दोष जिसकी सजा आप उसे पूरी उम्र देना चाहते है। आप खुद खुश रहना चाहते है पर एक मासूम को आपके खुशियों में शामिल नही करना चाहते और किसी को दुःखी कर खुद खुश और आबाद होना चाहते है। आज युवाओ को अपनी सोच बदलनी पड़ेगी अगर युवा पुनर्विवाह करने की सोच रहे हो तो बड़ी सोच लेकर आगे बढिये।
अगर लड़की का कोई पहले विवाह से कोई बच्चा है या बच्ची है उसको अच्छी सोच से स्वीकार कर उस मासूम को अपना प्यार,अपनापन और अपना नाम देकर अच्छे पिता की जिम्मेदारी निभाइये। वैसे ही अच्छी माँ की ज़िमेदारी निभाकर उस बच्चे को प्यार और ममता दीजिये फिर देखिये यह बच्चा आपके बुढ़ापे का सहारा बन आपकी सेवा करेगा और आपको अपनी सोच और निर्णय पर फक्र महसूस होगा। सभी समाज के परिवार माता पिता रिश्तेदार से भी निवेदन है की अगर आपके बच्चे का आप पुनर्विवाह करने जा रहे हो तो लड़की के साथ उसके बच्चे या बच्ची या लड़के के साथ उसके बच्चे के साथ स्वीकार कर एक बच्चे या बच्ची की जिंदगी फिर से सवारने का पुण्य का काम करिये। भगवान बहोत कम लोगो या परिवार को इस पुण्य के काम के लिए चुनता है अगर आपको भगवान ने चुना है तो अपने आप को खुशकिस्मत समझकर किसी ओर के बच्चे को अपना नाम,प्यार और अपनापन देकर पुनर्विवाह को स्वार्थक बनाने का प्रयत्न करे। याद रखे पुनर्विवाह करके आप दो लोगो की जिंदगी सवारकर उनके जिंदगी में खुशी और आनंद के पल लाते है तो पुनःविवाह करके आप हमेशा खुश रहेंगे। इसलिए आज के युवाओं से निवेदन है कि समय के साथ चलकर सोच बदले और समाज बदले।


स्वर्णकाररिश्ते
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