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आज सुबह सुबह दरबाजे पर घंटी बजी, मैंने सोचा दूधवाला होगा और मैं बरतन लेकर बाहर गयी तो देखा कि शर्मा अंकल आये थे अपनी बेटी के साथ । हैरानी के साथ मैंने अपना बर्तन वाला हाथ पीछे किया, उन्हें अन्दर बुलाया और मन ही मन दुआ की कि सब खैरियत से हो । मेरे पापा और शर्मा अंकल साथ ही ऑफिस में काम करते हैं और उनकी बड़ी बेटी स्नेहा स्कूल में मेरी सहपाठी रह चुकी है । स्नेहा से ही मुझे पता चला था कि उनके घर में लडकियों की पढाई को ज्यादा तबज्जो नही है और बाहर के सारे काम उसका भाई ही करता है, घर की महिलाओ को बाहर जाने कि अनुमति भी नही है । आज शर्मा अंकल ने बताया कि उन्होंने अपनी छोटी बेटी को Engineering में दाखिला दिलवा दिया है और चूकी मैंने भी Engineering की है तो वो चाहते थे कि मैं उसे कुछ सलाह दूं । मैं शर्मा अंकल में आये इस दैवीय चमत्कार के बारे में सोच ही रही थी कि उनके अगले वाक्य से मुझे सारा माज़रा समझ आ गया । वो कह रहे थे कि "भाई अगर बेटी को पदायेंगे नहीं तो तो अच्छा जमाई कैसे मिलेगा" । वो अपनी बेटी को सिर्फ इसलिए पढाना चाहते क्योकि इस बदलते परिवेश में उन्हें बेटी कि शादी में कोई दिक्कत न हो ।
बचपन से ही अपने बुजुर्गों से सुनती आई थी कि शादी के लिए लड़की की सुन्दरता और लड़के की जेब देखी जाती है... इस कथन को थोड़ा और विस्तार से कहा जाये तो जब भी किसी लड़की के लिए शादी का रिश्ता आता है तो सबसे पहले यह देखा जाता है कि लड़की सुन्दर है या नहीं और घर के काम काज में दक्ष है या नहीं, इस सोच के पीछे कई वजह हो सकती हैं जैसे कि अगर लड़की सुन्दर होगी तो बच्चे भी सुन्दर पैदा होंगे या फिर वो काम काज में निपुण होगी तो घर गृहस्थी अच्छे से संभाल लेगी । और जब भी किसी लड़के के लिए कोई रिश्ता आता है तो ये देखा जाता है कि वो कमाता कितना है, लायक है या नहीं, एक परिवार का बोझ अपने कन्धों पर उठा पायेगा या नहीं आदि । लेकिन शायद ये सब अब पुरानी बातें हो गयी हैं, समय के साथ साथ सोच भी बदल रही है और अब जब लड़की के लिए शादी का रिश्ता आता है तो पहली बात ये पूछी जाती है कि लड़की कितनी पढ़ी लिखी है, ताकि सुन्दर बच्चे और घर संभालने के साथ साथ वो बच्चों को पढ़ा भी सके या यूँ कहें कि बच्चों को बचपना से ही आधार सिक्षा दे सके, इसलिए अब पढ़ाई को तवज्जो दिया जाने लगा है, लेकिन यहाँ एक अहम् सवाल मन में आता है कि क्या सिर्फ लड़कियों को आजकल इसलिए पढाया जा रहा है ताकि उनकी शादी अच्छे घर में हो सके या उन्हें एक अच्छा लड़का मिल सके ? क्या लड़कियों का आत्म निर्भर होना ज़रूरी नहीं है ? 

आज जहाँ एक ओर लड़कियां लड़कों के साथ हर क्षेत्र में कदम से कदम मिला क्र आगे बाद रहीं हैं वहीँ दूसरी ओर आज भी हमारे समाज में लड़कियों 'पराया धन' ही समझा जाता है, और हम जिमेदारी स्वरूप उन्हें पड़ते तो हैं लेकिन उन्हें सपने देखने का कोई हक नही देते । आज भी लड़कियों की जगह रसोई में ही समझी जाती है । कॉलेज जाने के पहले ही उन्हें समझा दिया जाता है कि तुम्हे आगे जॉब नही करनी है, हमें सिर्फ डिग्री चाहिए ताकि उनकी शादी में कोई दिक्कत न आये । 
एक और जीवंत उदाहरण मैंने देखा और बहुत करीब से महसूस किया, मेरी सहेली कि एक दूर की रिश्तेदार कैतकी जी जो अब करीब ८५ वर्ष की होंगी, उनकी शादी १३ वर्ष की उम्र में हो गयी थी और दुर्भाग्य वश वो १४ वर्ष की उम्र में एक बाल विधवा बन गयीं, उस ज़माने में विधवा विवाह को समाज में बहुत गलत माना जाता था, इसलिए परिवार को चिंता हुई को अब उनकी साड़ी ज़िन्दगी अकेले कैसे गुज़रेगी ? क्या उन्हें किसी विधवा आश्रम में भेज देना चाहिए या घर में रखना चाहिए ... इस तरह के कई सवाल परिवार वालों के मन में चल रहे थे तब कैतकी जी की भाभी ने परिवार वालों को सलाह दी की कैतकी जी को पढाया जाए और उन्हें आत्म निर्भर बनाया जाये ताकि कल को उन्हें किसी पर निर्भर रहकर ज़िल्लत न उठानी पड़े, और आज मैं देखती हूँ की उनकी भाभी का वह निर्णय कितना सही था आज कैतकी जी ने अपनी कमाई से लाखों रुपये जोड़ लिए हैं और अब कोई भी उन्हें तरस भरी नज़रों से नहीं देखता बल्कि हर कोई उन्हें सम्मान की नज़रों से देखते हैं और कैतकी जी की अपनी कोई औलाद न होने की स्तिथि में भी उनके रिश्तेदार भी उनके बुढ़ापे का सहारा बनाने के लिए तैयार हैं । 

वहीँ दूसरी ओर एक कहानी सुनने को मिली कि एक लड़की के पति ने उसे शादी के बाद छोड़कर किसी और से शादी करली, उस लड़की की उम्र अब ५० के आस पास होगी, वो भी कैतकी की तरह ही अनपढ़ थी, लेकिन परिवार वालों ने उसे पढ़ाना ज़रूरी नहीं समझा और सोचा कि भविष्य में उसके भाई मिलकर क्या एक बहिन को नहीं पाल सकते ... और उन्हें आत्म निर्भर नहीं बनाया, आज उसके भाई की उम्र के एक दशक को पार कर चुके उनके बच्चे अपनी पढ़ाई में लग गए हैं या कुछ की शादी हो गयी है, पैसे देने को कोई कभी इनकार नहीं करता लेकिन वो लड़की आज एक सम्मानित ज़िन्दगी नहीं जी रही है, उसे दूसरों पर निर्भर रहकर जीना अच्छा नहीं लगता ..... 
हममे से कोई नहीं जनता की हमारे कल में हमारे लिए क्या लिखा है, इसलिए लड़कियों का आत्मनिर्भर होना आज के ज़माने में बहुत ज़रूरी है. इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी लड़कियों के सपनो के पंख उनके उड़ना सीखने से पहले ही कुतर दिए जाते हैं । और जब इसकी वजह जानने की कोशिश की जाती है तो एक ही जबाब मिलता है कि 'लोग क्या कहेंगे,बेटी से पैसे के लिए काम करवाते हैं' । पर क्या सिर्फ लोगों के डर से आप अपनी कि बेटी से सपने देखने का हक चीन लेंगे और क्या ये लोग हमारी ही समाज का हिस्सा नही हैं ? 

समाज का यह दोगलापन भले ही लड़कियों के विकास में बाधक है पर कम से कम इस कारन ही सही लडकियों की शिक्षा दर में बढोतरी तो हुई है । अशिक्षित ही ब्याह देने बलि बेटियों को आज अच्छा वर पाने के लिए शिक्षित किया जा रहा है । उन नन्ही परियों को उड़ जाने का एक मौका तो मिलता है, फिर चाहे वो शादी के बाद हो या बगाबत करके । अगर आप की बेटी भी आपसे कामकाजी होने के लिए कहती है तो उसे समझाने की वजाए आप उसको समझने कि कोशिश करे । या आपके सामने कोई इस तरह की बात करता है तो उसे समझाएं कि बेटी को पढ़ायें पर महज़ अच्छे जमाई के लिए नही बल्कि इसलिए क्योकि उसे भी सपने देखने का हक है, उसे भी उड़ने का हक है ।


अंकिता ......