सभी समाज भाइयोँ को यथोचित नमन, एक समय था रिश्तों के लिये विज्ञापन की आवश्यकता नहीं पङती थी । अशिक्षित की शादी मे भी कहीँ कोई दिक्कत नहीं आती थी। और आज दरअसल हम शिक्षा के नाम पर भटक रहे है। कुछ स्वावलंबी बनने की सोच। और कुछ वो डर कि शादी के बाद पता नहीं क्या होगा ? इसलिये पाँव पर खङा होना जरूरी है। और ये सोच घर भी खराब कर रही है । पहले की अपेक्षा रिश्ते टुटने मे काफी वृद्धि हुई है। वो स़ोच रिश्तोँ की मधुरता मे घमंड भी ला रही है। बराबरी का भाव। कि मै तुमसे कमजोर नहीं तो क्यों दबूँ ? घर छोटी मोटी गलतियों को बिसराते हुए समझौऐ से चलता है । झुठी अकङ से नहीं। पहले कभी ऐसी दिक्कत नही आती थी। निरक्षर कन्या की भी शादी जब चाहो तुरंत हो जाती थी। अब बङी बङी डिग्री धारक को भी बायोडाटा सहित विज्ञापन देना पङ रहा है। रिश्तों की जगह सौदेबाजी ने ले ली है। पढे को पढा ही चाहिये । भले ही कम कमाये । थोङा कम पढा है तो किस काम का ? सोचता हूँ शिक्षित हम है या पुर्वज थे ? हर आदमी उससे अच्छा उससे अच्छा के चक्कर मे उम्र बढा रहा है । और अंत मे लिखता है कोई भी जाति के स्वीकार्य। बच्चों को माँ बाप पर भरोसा नही। स्वयं जब तक देख सुन न ले हाँ नही करते। जबकि जीवन का अनुभव जीरो है। एक तकिया कलाम चला है कि जिन्दगी हमे निभानी है। बाप दादाओं की जिन्दगी कौन निभाता था ? उपर से ये कुँडली मिलान वाला रोग। पहले बहुत कम ही कुँडली बनवाते थे। बनवाते भी थे तो मिलाते कम ही थे। और जीवन शानदार जीते थे। और अब सम्बन्ध विच्छेद की तलवार लटकी ही रहती है। पढे लिखे बच्चे है। कानून के जानकार। तलाकनामा तो एनी टाइम जेब मे ही रहता है। रोज नये बायोडाटा ग्रुप बन रहे है। विज्ञापन रुपी तस्वीरे भी खुब आ रही है। लेकिन फिर भी रिश्तों मे दिक्कत आ रही है। अब तो तलाक शुदा ग्रुप भी खुलने लगे है। खूब तमाशाबाजी चल रही है। शादी की उम्र होती है। शिक्षा की नहीं। शादी के बाद भी पढा जा सकता है। एक उम्र के बाद चेहरे की चमक उङने लगती है। उसमे ब्यूटीशियन भी बहुत सहयोग नही कर सकते। चाहे कितने ही महँगे प्रोडक्ट इस्तेमाल कर ले। चेहरा धुलते ही असली आवरण सामने आ जाता है। आजकल फलों को भी और सब्जी को भी कलर करके बेचा जाने लगा है। ये कहाँ से कहाँ आ गये हम ? ये कैसी शिक्षा है। शिक्षा तो आ गयी। लेकिन संस्कार और भाईचारा समाप्त हो गया।
पहले पोता पङपोता देखना आम बात थी। अब शायद कुछ लोग बच्चों की शादी भी शायद ही देख पायें। क्याँकि 35 या 40 साल मे शादी करने वालोँ के बच्चों की शादी भी इसी उम्र मे होगी। और आजकल 70 या 80 साल की आयु नहीं होती। खानपान और रहनसहन ही ऐसा है। सब कुछ बहुत डरावना है।
ये दीवाना दीवानी लिखने से कोई दिवाना नहीं बनने वाला। परिवार की एकता की ये हालत है कि सभी क़ो छोटा सा परिवार चाहिये। बङा परिवार है और प्यार से रहते है तो आजकल उसे अच्छा नहीं मानते। ये कैसी शिक्षा और संस्कार है ?
अभी भी वक्त है संभल जाओ । आनेवाले समय मे और भी हजारों बायोडाटा ग्रुप खुल जायेँगे । लाभ कुछ नहीं होनेवाला । सोच को सही दिशा मे ले जाओ तो शादी मे दिक्कत नही आयेगी । क्योंकि दिशा का उल्टा शादी ही होता है । शिक्षित बहुत होशियार नही होता । और अशिक्षित बहुत बेवकूफ नही होता । जीवन मे जरुरी है तो आजीविका घर मे सुख आपसी तालमेल पारिवारिक एकता।
शायद ?
किसी को मेरी बात बुरी लगी हो त़ो क्षमा। लेकिन एक बार चिन्तन जरुर करें ।
संकलन हरिकृष्ण सोनी (सणखत) शहडोल ( मध्यप्रदेश ) |