मायके में बाकी सब कुछ था, साजन तेरा प्यार नहीं था। मेरे स्वप्न सुनहरे तो थे, पर पाया आकार नहीं था। मेरे प्यारे पापाजी थे, स्नेहिल ,व्यस्त, मगर रोबीले। स्नेहिल ,व्यस्त ससुरजी भी हैं, मगर सास के आगे ढीले। मम्मी थी ममता की मूरत, मेरी शिक्षक और सखी थी। था कठोर अनुशासन उनका, लेकिन दिल से मोम रखी थी। ये कर ,वो कर,ऐसे मत कर, जाने क्या क्या था समझाया। वर्ना तेरी सास कहेगी, तेरी माँ ने कुछ न सिखाया। बहुत प्यार करती सासू माँ, लेकिन थोडा सास पना है। सासू शक्कर,पर टक्कर की, यह मुहावरा, कहा सुना है। कभी डाट ती,ताने देती, किन्तु बाद में समझाती है। घर घर रहन सहन का अंतर, तौर तरीके बतलाती है। उनके प्यारे से बेटे पर , मैंने कर अधिकार लिया है। यही गिला है उनके मन में, आखिर माँ तो होती माँ है। और ननद प्यारी बहना सी, है मासूम बड़ी चंचल सी। बहुत प्यार करती भाभी से, बातें सभी बताती दिल की। मइके में सबको लगता था, बेटी नहीं , पराया धन है। पर अपना सा लगता ये घर, यहीं बिताना अब जीवन है। जब मै बड़ी हुई साजन के , लगे जागने सपने मन में। तुमसा जीवन साथी पाकर, खुशियाँ सभी मिली जीवन में. छेड़ा छाडी, मान मनोव्वल , दिन रंगीन ,महकती राते। एक दूसरे में खो जाना, ख़तम न हो , वो मीठी बातें। मेरे जीवन का ये उपवन, तब इतना गुलजार नही था। मइके में बाकि सब कुछ था, साजन तेरा प्यार नहं था।
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