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बदली मानसिकता:
शादी के बाद दोनों के विचार मिल रहे हो तो जुड़े रहो और साथ रहो। अगर स्वभाव एव विचार अलग है या एकदूसरे के साथ जम नही रहा ऐसा लग रहा हो तो अलग हो जाओ। ऐसी मानसिकता समाज और परिवार में चल रही है।

सामाजिक बदलाव:
आज लड़कियाँ उच्चशिक्षित और आर्थिकदृष्टि से स्वावलंबी हो रही है। अब मैं सक्षम हु तो मैं क्यो सहन करू। ऐसी आज की शिक्षित लड़कियों की सोच हो रही है।

बदली हुई जीवनशैली:
सोशल मीडिया के अति उपयोग के कारण रिश्तों में दरार बन रही है।आज की युवा पिढ़ी की एकदुसरे के प्रति अपेक्षा बदल रही है। हर किसी को आज़ादी चाहिए। इसलिए खुद को बदलने के लिए कोई विकल्प तैयार नही है।

बोलचाल या संभाषण की कमी:
टीवी,मोबाइल,व्हाट्सएप्प,फेसबुक के प्रति उपयोग के कारण पतिपत्नी का एकदुसरे से बोलचाल या संभाषण कम हो रहा है। पति पत्नी का मोबाइल पर सिर्फ व्यवहारिक संभाषण के कारण बोलचाल हो नही रहा है लेकिन वादविवाद बढ़ रहा है।

माता पिता की दखलंदाजी:
लड़की के ससुराल में सब-बातें उसको जैसा चाहिए वैसी ही मिलनी चाहिए इस चक्कर मे लड़की के ससुराल में उसके माता पिता की दखलअंदाजी बढ़ रही है और शादी के बाद अपना लड़का अपने से दूर न हो जाये इसी चक्कर मे अपना लड़का हम से दूर न हो जाये इसी कारण से लड़के मातापिता उसके वैवाहिक जिंदगी में ज्यादा ध्यान दे रहे है।

अहंकार:
पतिपत्नी दोनों ही उच्चशिक्षित,आर्थिकदृष्टि से सक्षम होने के कारण कौन किसका सुनेगा,सामनेवाले ही सिर्फ बदले मैं नही बदलूँगा।मैं मेरी आदते नही छोडूंगा।इस अहंकार और मैं के कारण रिश्ते और रिश्तेदारी में तनाव बढ़ रहा है।

अन्य कारण:
एकदुसरे के प्रति गलतफहमी,शक,बुरी आदतें, शारिरिक और मानसिक बीमारी,ड्रिंक करना ऐसे अनेक कारणों के कारण आज समस्या निर्माण हो रही है।


उपाय योजना:

परिवार को संभाल सकते है:
वैवाहिक जीवन मे "मेड फ़ॉर इच अदर" यह केवल कल्पना करने की चीज होती है। वो हकीगत में कठिन होता है। लेकिन "मोल्ड फ़ॉर इच अदर" की सोचे तो परिवार को एव रिश्ते को संभालकर रख सकते है।


बातचीत:
पति पत्नी को एक दूसरे की हमेशा तारीफ करनी चाहिए। एक दूसरे को सपोर्ट करना चाहिए। जो चीजे पसंद नही है उसको साथ बैठकर अच्छे से बातचीत करके समझने और दूर करने की कोशिश करते रहनी चाहिए।

स्पर्धा/होड़ नही करनी चाहिए:
पतिपत्नी दोनों ने ही एकदूजे के साथ स्पर्धा या होड़ नही करनी चाहिए। तुमने मेरे मातापिता और घरवालो से ठीक से बात नही करते हो। अब मैं भी तुम्हारे मातापिता और रिश्तेदारों से अच्छी नही रहूंगी या उनसे ठीक से बात नही  करूँगी।

स्वीकार करना जरूरी।
जैसा सोचा था वैसा जीवनसाथी नही मिला या उसकी कुछ आदते या स्वभाव सहित उसको स्वीकार कर सकते इसके बारेमे हमेशा सोचना चाहिए और आगे बढना चाहिए।

खुद में बदलाव की जरूरत:
मैं ही क्यो बदलू यह अहंकार को न रखते हुए रिश्ते और रिश्तेदारी को मजबूत करने के लिए खुद मैं ही बदलाव की शुरुवात दिखानी करनी चाहिये।

ज़िमेदारी का अहसास:
विवाह के बाद आनेवाली जिमेदारी को ध्यान में रखकर उसको कैसे अच्छी तरफ पूरी मेहनत से निभाने के लिए अपनी सोच  और भावनाओ को बदलने की जरूरत होती है।

झुकने और निभाने की तैयारी:
कोई भी पतिपत्नी में वादविवाद होता ही है लेकिन उसको कितना बढ़ाना या खींचना यह हमारे हाथ मे होता है। झुकने और एडजस्ट के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए ताकि वादविवाद न बढ़ सके और रिश्ते में मिठास बनी रहे।


आखिर में जो सोचा है या चाहा है वैसा ही हमे मिले यह सामान्य जीवन मे कभी किसीको मिलता नही है। लेकिन जो मिला है उसको मनसे, दिलसे,प्यारसे और खुशी से स्वीकार करले तो पारिवारिक रिश्ते निभा भी सकते है और टिकाना भी बहोत आसान हो सकता है।




स्वर्णकाररिश्ते
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